दिल दहला देने वाली घटना , भागलपुर का आंख फुडवा कांड जानें पूरा मामला
भागलपुर की ऐतिहासिक घटना
सन 1980 में जब भागलपुर में अंधे हुए लोगों की तस्वीरें छपी तो उस समय पूरी मानवता शर्मसार हो गई। इसमें पुलिस ने 33 लोगों की आंखें फोड़ी और उनमें तेजाब डाल कर उनको अंधा कर दिया था। इसमें कुछ पुलिस वालों ने तुरंत न्याय करने के नाम पर लोगों की आंखों में तेजाब डाला। बाद में इस घटना पर एक फिल्म भी बनी उसका नाम गंगाजल है। हाल ही में मशहूर रहे एक मशहूर लेखक ‘ अरुण शौरी’ की पुस्तक “कमिश्नर फॉर लॉस्ट कोशिश” में उन्होंने इस घटना का बहुत ही विस्तार से उल्लेख किया है।
जिसे उनके एक अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने सबसे पहले प्रकाशित किया था। अरुण सिन्हा जोकि बाद में गोवा के अखबार ‘ नवहिंद टाइम्स ‘ के संपादक बने बताते हैं कि जब मैं भागलपुर की जेल के सुपरिंटेंडेंट ,’ बच्चू लाल ‘ से मिला तो पहले उन्होंने इस घटना को मुझे बताने में हिचकिचाहट महसूस की उसके बाद जब उनको यह यकीन हो गया कि मैं एक न्यूज़ एजेंसी में काम करता हूं तो उन्होंने इस घटना की मुझे विस्तार से जानकारी दी।
भागलपुर में मौजूदा हालात
इस घटना को आज 40 साल से भी ज्यादा हो गए हैं लेकिन अरुण सिन्हा आज तक बीएल दास को भूले नहीं है। जब अरुण शौरी से यह पूछा गया कि कैदियों को किस तरह से अंधा किया जाता था तब उन्होंने बताया कि पहले कैदियों को पकड़ लिया जाता था और उनको जेल के एक कमरे में ले जाकर हाथ पैरों को बांध दिया जाता था। उसके बाद एक डॉक्टर को बुलाया जाता था जिसके पश्चात वह डॉक्टर एक नुकीले औजार से उनकी आंखों को छोड़ता और आंखों को बिल्कुल खत्म करने के लिए उसमें तेजाब डाल देता था।
जिससे आंखों की रोशनी बिल्कुल खत्म हो जाए। इसके साथ-साथ एक ऐसी घटना भी हुई जब सात अंधे किए गए कैदी एक कमरे में लेटे हुए थे। तभी एक डॉक्टर उस कमरे में प्रवेश करते हैं और कैदियों से पूछते हैं कि तुम लोगों में से कौन देख सकता है और कौन नहीं देख सकता। तभी उनमें से दो तीन कैदियों ने यह सोचा कि शायद डॉक्टर साहब की सोच बदल गई है और हो सकता है कि हमारी आंखों का इलाज हो जाए तो उनमें से कुछ ने बोला है कि हां डॉक्टर साहब मुझे कुछ परछाई के जैसा दिखाई देता है और लाइट दिखाई देती है।
कैसा सलूक रहा कैदियों के साथ
इसके कुछ समय बाद उन दो तीन कैदियों को फिर से एक दूसरे कमरे में ले जाया गया और उनकी आंखों को दोबारा से एक नुकीले औजार से फोड़ दिया गया एवम दोबारा से उन में तेजाब डाला गया। तेजाब को पुलिस वाले गंगाजल कहकर पुकारते थे। इस घटना में जो लोग अंधे के गए थे उनमें से उमेश यादव आज भी जिंदा हैं। इस समय उनकी उम्र 66 साल है और वह भागलपुर के एक कुप्पाघाट गांव में रहते हैं। उमेश यादव बताते हैं कि जब इस घटना की जांच हुई तो हमको ₹15000 का मुआवजा दिया गया जोकि किस्तों में करके दिया गया। और पेंशन देने के लिए भी कहा गया था लेकिन हम को पेंशन भी नहीं मिल रही है ।
बराड़ी के रहने वाले एक और पीड़ित भोला चौधरी बताते हैं कि किस तरह से जेल में नुकीले औजार मार मार कर हमारी आंखें थोड़ी गई। बाद में जब अरुण सिन्हा ने इसकी और गहराई से जांच की तो पता लगा कि जगन्नाथ मिश्रा मंत्रिमंडल के कम से कम एक सदस्य को को इस घटना के बारे में 4 महीने पहले से ही मालूम था और उन्होंने इस बारे में पुलिस को आगाह भी किया था तो भागलपुर के सीनियर पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जिले में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए यही सबसे कारगर तरीका है।
जैसे ही यह खबर अखबार में छपी तो बिहार के केंद्रीय मंत्री “वसंत साखे” ने कहा कि यह खबर पुलिस का मनोबल गिराने का काम कर रही है। लेकिन आचार्य कृपलानी ने एक सभा करके इस घटना की घोर निंदा की, जब यह मामला संसद में उठा तो सरकार ने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि जो कुछ भी हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले का संज्ञान लेते हुए सभी पीड़ितों का अखिल भारतीय चिकित्सा विज्ञान में इनकी जांच कराने का आदेश दिया।
उसने यह भी कहा कि इन लोगों को जो शारीरिक नुकसान हुआ है। उसको वापस लाने के लिए अदालत कुछ नहीं कर सकती लेकिन जिन लोगों ने ऐसा क्या है उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की क्रूरता वाली कोई घटना दोबारा सामने ना आए।