नौशेरा का शेर ‘ ब्रिगेडियर उस्मान जिस पर पाकिस्तानी सरकार ने रखा था इनाम
नई दिल्ली: आपको बता दें कि भारत के कई सैनिक इतिहासकारों का यह मानना है कि अगर ब्रिगेडियर उस्मान साहब की जल्द मौत ना हो गई होती तो वह भारत के पहले थल सेना अध्यक्ष होते। हिंदी में कहावत है कि ‘ ईश्वर जिसे चाहता है उसे जल्द ही अपने पास बुला लेता है ‘ बहादुर लोगों की बहुत ही कमी से लंबी आयु होती है। यह बात ब्रिगेडियर उस्मान पर बिल्कुल सही बैठती है ब्रिगेडियर उस्मान नोसेरा की लड़ाई में शहीद गए तब उनके 36 वें जन्मदिन में 12 दिन बाकी थे।
इतनी कम आयु में ही उन्होंने इतना सब कुछ हासिल कर लिया जितना बहुत लोग उससे ज्यादा जीवन जी कर भी हासिल नहीं कर पाते हैं। 1948 में नौशेरा की लड़ाई के बाद ब्रिगेडियर उस्मान साहब को नौशेरा का शेर के नाम से जाना जाने लगा। नौशेरा उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 में मऊ जिले में हुआ था। इनके पिता काजी मोहम्मद फारुख बनारस जिले के कोतवाल थे और इन्हें अंग्रेज सरकार ने ‘ खान बहादुर ‘ का खिताब दिया था।
पाकिस्तान ने रखा 50000 का नाम
नौशेरा की लड़ाई में उस्मान ने आगे बढ़ हिस्सा लिया तो उसी समय पाकिस्तानी सरकार ने उन पर ₹50000 का इनाम रख दिया था जो कि उस समय बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी। उस्मान जब 12 साल के थे तो वह एक कुएं के पास से गुजर रहे थे तो वहां पर बहुत लोगों की भीड़ लगी हुई थी जैसे ही उन्हें पता लगा की कुएं में एक साल का बच्चा गिर गया है। उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे कुएं में छलांग लगा दी। बता देगी उस्मान बचपन में हक लाया करते थे ।
उनके पिता ने यह सोचा कि शायद इस कमी के कारण वह सिविल सर्विस में ना जा पाए इसलिए उनके पिता ने उनको पुलिस में जाने का मशवरा दिया। उस्मान के पिता एक बार उस्मान को अपने बॉस के पास लेकर गए। उस अंग्रेज अफसर ने उनसे कुछ सवाल किए इत्तेफाक से वह अंग्रेज अफसर भी हकला या करता था। इसलिए उस अंग्रेज अफसर ने सोचा कि वह बच्चा उसकी नकल उतार रहा है और वह नाराज हो गया। जिस कारण उनका पुलिस में जाने का सपना भी चूर चूर हो गया। 1934 में भारतीय सेना में भर्ती हुए ‘ सैम मानिक शाह और मोहम्मद मूसा ‘ उनके बेच के ही साथी ही थे।
जो बाद में भारतीय और पाकिस्तानी सेना के चीज बने, 1947 तक उस्मान ब्रिगेडियर बन चुके थे सब लोग यह अंदाजा लगा रहे थे कि शायद उस्मान पाकिस्तान जाने का फैसला करेंगे। उस्मान की जीवनी लिखने वाले ‘ वीके सिंह ‘ बताते हैं कि मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने अपनी तरफ से भरपूर कोशिश की कि वह भारत में रहने का अपना फैसला बदल दें और पाकिस्तान चले आए लेकिन उन्होंने पाकिस्तान जाने से साफ इनकार कर दिया।
पाकिस्तान ने दिया पदोन्नति का लालच
पाकिस्तानी सरकार ने उनको पद में उन्नति का लालच भी दिया लेकिन उन्होंने इस को सिरे से नकार दिया जैसे कि एक मुस्लिम सैन्य अधिकारी थे। मुस्लिम होने के साथ उनमें कोई धार्मिक पूर्वाग्रह नहीं था। उन्होंने अपनी निष्पक्षता और ईमानदारी से अपने साथ के सभी लोगों का दिल जीत लिया था। अक्टूबर सन 1947 को कबालियों ने पाकिस्तानी सेना के साथ में मिलकर कश्मीर पर हमला बोल दिया जिसमें उन्होंने कश्मीर के काफी हिस्से पर कब्जा भी कर लिया। अगले दिन भारतीय सेना ने उनको रोकने का फैसला किया। 07 नवंबर को कबायलियो ने राजोरी पर कब्जा कर लिया था।
हालांकि उस्मान उस एरिया में डटे हुए तो थे लेकिन उनके साथ में पर्याप्त मात्रा में सैनिक नहीं थे। इसलिए उनको सफलता नहीं मिल पाई। 26 नवंबर को कबालिओं ने हमला कर छागढ़ पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद उनका अगला लक्ष्य नौशेरा था। उन्होंने नौशेरा को चारों तरफ से खेलना शुरू कर दिया । बंटवारे के समय सांप्रदायिक दंगों होने के बाद भारतीय सैनिकों का उस्मान पर भरोसा नहीं था। इसलिए उस्मान के सामने दो चुनौती थी कि अपने दुश्मनों के मंसूबों को खाक में मिला ना और अपने सैनिकों का विश्वास जीतना था।
नौशेरा की लड़ाई
भारतीय सेना ने कोर्ट पर 1 फरवरी 1948 को सुबह 6:00 बजे हमला किया और 7:00 बजे तक यह लगने लगा था कि कोर्ट पर भारतीय सेना का कब्जा हो जाएगा। 2/2पंजाब बटालियन ने अपनी कामयाबी का संदेश भी भेज दिया था लेकिन बाद में पता चला कि बटालियन ने कबालियो घरों की तलाशी अच्छे से नहीं ली जिसमें कबाइली सोते हुए रह गए थे। बाद में इनका कबालियों ने दोबारा से कोट पर हमला किया और दोबारा से कब्जा कर लिया। इस बात का अंदाजा ब्रिगेडियर उस्मान को पहले से ही था। जिसके बदले में ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने सेना की दो टुकड़ी रिजर्व में रखी हुई थी।
उस्मान ने अपनी टुकड़ी के साथ भारी गोलाबारी करते हुए कबालियों के 156 आदमी मारे और कोर्ट पर फिर से कब्जा कर लिया जबकि 2/2 पंजाब बटालियन के सिर्फ 2 जवान शहीद हुए। 6 फरवरी 1948 को कश्मीर की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी गई। इस लड़ाई में लगभग 11000 पठानों ने भाग लिया। जिसमें कुछ ने नौशेरा पर और कुछ नहीं कोर्ट पर हमला किया। अभी कोर्ट पर हमला जारी था तभी 5000 पठानों के झुंड ने पश्चिम और दक्षिण पश्चिम की तरफ से हमला किया। इस हमले को बड़े ही साहस के साथ उस्मान में नाकाम किया और लड़ाई का रुख ही बदल डाला।
नोसेरा की लड़ाई के बाद ब्रिगेडियर उस्मान का हर जगह नाम हो गया और रात ही रात ब्रिगेडियर उस्मान देश के हीरो बन गए। सुबह 5:45 पर कबालियों ने ब्रिगेड के मुख्यालय पर बोले बरसाने चालू कर दिए जिसमें 25 पाउंड का एक गोला ब्रिगेडियर उस्मान सब के पास गिरा और ब्रिगेडियर उस्मान साहब 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए शहीद हो गए । भारत माता के लिए अपनी जान देने वाले इस वीर के सम्मान में दिल्ली एयरपोर्ट पर श्रद्धांजलि देने के लिए बहुत बड़ी संख्या में भीड़ जमा हो गई थी। उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया क्या गया।