जब भुखमरी की जंग में शास्त्री जी के साथ खड़ा था पूरा देश, जानें और भी रोचक बातें

जब भुखमरी की जंग में शास्त्री जी के साथ खड़ा था पूरा देश, जानें और भी रोचक बातें

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सादा जीवन जीते थे और भारत देश को आगे बढ़ाने में उनकी मेहनत और लगन आज भी सराहनीय है। भारत के विकास में लाल बहादुर शास्त्री का योगदान अद्वितीय है। वे देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे और उन्होंने देश की जमीनी हकीकत को समझकर उसे आगे बढ़ाने में पूरी कोशिश की थी।

1.सिर पर किताब बांधकर तैरते थे शास्त्री जी-

लाल बहादुर को स्कॉलर की सफलता का प्रतीक माना गया था, जिससे उन्हें 1926 में काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय से ‘शास्त्री’ की उपाधि मिली। स्कूल के समय में, शास्त्री दिन में दो बार गंगा में तैरते थे और उनके सिर पर किताब बंधी होती थी क्योंकि उनके पास नाव लेने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते थे।

2.जब पूरे देश ने रखा था एक उपवा-

सजब भारत गेंहू की उपज दूसरे देशों में भेजता था, तो आबादी का बड़ा हिस्सा भुखमरी की कागार पर था। ऐसे में शास्त्री जी और उनके परिवार ने एक समय भोजन न करने का निर्णय लिया, जिससे देश को भूखा न सोना पड़े। उस समय शास्त्री जी ने AIR (आल इंडिया रेडियो) पर देशवासियों से एक समय भोजन न करने का आह्वान किया था।

3. ‘जय जवान-जय किसान’

लाल बहादुर शास्त्री ने देश को ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया, जिसने सीमा पर तैनात जवानों और देश में अनाज पैदा करने वाले किसानों का मनोबल बढ़ाया। जब राष्ट्रव्यापी उपवास रखा गया था, तो उनके इस लोकप्रिय नारे ने देश के किसान और जवानों को समान महत्व दिया था।

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4. देशवासियों से घर में गेंहू उगाने का किया आग्रह

भारत को साल 1965 और 1966 में सूखे का सामना करना पड़ा था और शास्त्री जी ने दूध से जुड़ी श्वेत क्रांति में लोगों की खूब मदद की थी। इसके अलावा उन्होंने सभी परिवार को घर में चावल और गेंहू उगाने का आग्रह किया था। इस आंदोलन की शुरुआत लाल बहादुर शास्त्री ने खुद चावल और गेंहू उगाकर की थी।

5.लाठी चार्ज के बजाए किया पानी के जेट का इस्तेमाल

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश में पुलिस मंत्री के रूप में, शास्त्री पहले व्यक्ति थे जिन्होंने लाठी चार्ज के बजाय भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पानी के जेट का इस्तेमाल किया था।

6. पेंशन कम करके जरूरतमंदों को दिए पैसे

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब शास्त्री जी जेल में थे, तब उनकी पत्नी को 50 रुपये प्रति माह पेंशन मिलती थी। शास्त्री की पत्नी ने एक बार उन्हें बताया था कि उन्होंने उससे 10 रुपये बचाए हैं। उस बात को जानकर शास्त्री जी ने जन समाज के सेवकों से अपनी पेंशन कम करने और कुछ जरूरतमंदों को 10 रुपये देने के लिए कहा।

7. ईमानदारी को देते थे महत्व

शास्त्री जी का जीवन का संघर्ष और मेहनत की पाठशाला है। वह हमेशा ईमानदारी से काम करते थे। जब उनके बेटे को एक विभाग में अनुचित पदोन्नति दी गई थी, तो शास्त्री जी ने इसे तुरंत वापस करवा दिया था।