उर्दू भाषा को लेकर योगी सरकार का बड़ा फैसला

उर्दू भाषा को लेकर योगी सरकार का बड़ा फैसला

लखनऊ: बता दें कि उत्तर प्रदेश में उर्दू भाषा को लेकर योगी आदित्यनाथ की सरकार ने एक बहुत बड़ा कदम उठाया है। उत्तर प्रदेश में 1989 को एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था। यह नोटिफिकेशन 07 अक्टूबर 1989 को जारी किया गया था। जिसमें यह बात सामने आई कि उत्तर प्रदेश में हिंदी भाषा के बाद उर्दू जबान को उत्तर प्रदेश की दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था। इसको लेकर 19 नवंबर 1990 को इसको लागू करने का फैसला लिया गया।

यानी दूसरे लफ्जों में कहें तो 1989 में उर्दू जबान को यूपी में उत्तर प्रदेश की दूसरी सरकारी आधिकारिक जबान का दर्जा मिल गया था। 1989 के बाद उर्दू जबान को प्रमोट करने के लिए कई बार नए- नए कदम उठाए गए लेकिन जो कदम योगी सरकार ने उर्दू जबान के लिए उठाया है। वह बहुत ही सराहनीय हैं और इससे उर्दू जबान को बहुत  फायदा मिलने वाला है।

उत्तर प्रदेश के मेडिकल एंड हेल्थ डिपार्टमेंट की तरफ से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया है। इस नोटिफिकेशन में प्राइमरी हेल्थ सेंटर कम्युनिटी हेल्थ सेंटर और डिस्टिक हॉस्पिटल यानी कि हम जिनको दूसरी जबान में तिब्बी सेंटर भी बोलते हैं। उनको योगी आदित्यनाथ सरकार ने उर्दू जबान में नाम लिखने के निर्देश जारी किए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का जो मेडिकल एंड हेल्थ डिपार्टमेंट है।

उसने यूपी के सभी जिलों के चीफ मेडिकल ऑफिसर को 1 सितंबर से एक नोटिफिकेशन जारी किया है। जिसमें 1989 के इस नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए बोला गया है कि उत्तर प्रदेश में जितने भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर , डिस्टिक हॉस्पिटल और प्राइमरी हेल्थ सेंटर हैं उन सबके नाम उर्दू में लिखे जाएं।

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इसके साथ साथ जो डॉक्टर वहां पर काम करते हैं। उनके नाम हिंदी के साथ साथ उर्दू में भी लिखे जाएंगे। डॉक्टर लोगों के चेंबर के नाम उर्दू में लिखे जाएंगे और जो वहां पर ऑपरेटर एवं अन्य कर्मचारी वहां पर रहते हैं। उनके नामो की लिस्ट भी हिंदी के साथ-साथ उर्दू में भी लिखी जाएगी। इस लिहाज से जहां एक तरफ उर्दू भाषा धीरे-धीरे अपने पतन की ओर जा रही थी। वही योगी सरकार का यह बड़ा फैसला उर्दू भाषा को एक नई दिशा देने का काम कर सकता है।

अगर उर्दू जबान को लेकर के भारत के अन्य राज्यों एवं दूसरे डिपार्टमेंट में भी इसी तरह के फैसले लिए जाएं। तो उर्दू जबान को फिर से हिंदी के साथ साथ उरूज़ हासिल हो सकता है। अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या सिर्फ इतने ही से उर्दू जबान को फिर से नई दिशा मिल सकती है या फिर मदरसों और स्कूलों में भी उर्दू जबान के नए अध्यापक नियुक्त करने चाहिए? जिससे कि उर्दू जबान को फैलाने में मदद मिल सके।