मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर कोर्ट का फैसला, मुस्लिम समाज खुश!

मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर कोर्ट का फैसला, मुस्लिम समाज खुश!

कर्नाटक: आपको बताते हैं कि मस्जिदों के लाउडस्पीकर को लेकर के कर्नाटका हाई कोर्ट का एक बड़ा फैसला सामने आया है। पिछले दिनों कर्नाटका में अजान को लेकर काफी विवाद हुआ , अजान को लेकर यह विवाद कर्नाटका में ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में देखने में आया। हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जिनको अजान पसंद नहीं उनका कहना है कि उनको और अजान से दिक्कत होती है।

उनका यह मानना भी है कि दूसरे धर्म के रीति रिवाज उनके धर्म में बिगाड़ पैदा कर सकती हैं लेकिन आमतौर पर ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। यह कुछ लोगों की सोच है। जो समाज में नफरत फैलाने का काम करते हैं आपस में एक दूसरे को लड़ाते हैं और उससे राजनीतिक लाभ उठाते हैं। इसी तरह का एक मामला कर्नाटका हाई कोर्ट में पहुंचा इसमें शिकायत दर्ज की गई की अजान से एक समुदाय विशेष को दिक्कत होती है हालांकि एक ही आदमी इस मामले को लेकर हाई कोर्ट पहुंचा। जिसमें यह कहा गया कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर में अजान बंद होनी चाहिए ।

हाइकोर्ट का फैसला

अब इस मामले को लेकर कर्नाटका हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है क्योंकि इस मामले पर राजनीति बहुत हो चुकी।
कर्नाटका हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लाउडस्पीकर में अजान देने से दूसरे धर्म के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होता है। यदि कोई व्यक्ति अजान देता है तो इससे दूसरे धर्म के लोगों के फंडामेंटल राइट पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।

कोर्ट ने अपने फैसले में आगे यह कहा कि अजान पर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि यह मुस्लिम धर्म के जरूरी हिस्सों में से एक है। यह बहुत पहले समय से चली आ रही है। इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। हालांकि प्रशासन को नोटिस जारी कर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि लाउड स्पीकरओं की आवाज को ध्वनि प्रदूषण के नियमों के अनुसार उनकी आवाज को उतना ही रखा जाए। जिससे ध्वनि प्रदूषण ना हो ।

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इसमें लाउडस्पीकर में अजान और मंदिरों में भजन और अन्य दूसरे कार्यक्रमों को लेकर को लेकर सुप्रीम कोर्ट का पहले ही आदेश जारी हो चुका है। जिसमें कहा गया है कि लाउड स्पीकर ओं की आवाज एक लिमिट में ही होनी चाहिए । जिससे ध्वनि प्रदूषण ना हो।

आर्टीकल 25, 26 में क्या है

इसमें दूसरी बड़ी चीज एक और कर्नाटका हाई कोर्ट ने कही है। जिसमें कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 25 और 26 का हवाला देते हुए कहा है कि यह सहिष्णुता का प्रतीक है। यानी जिसको सिंबल ऑफ टॉलरेंस भी कहा गया है कि आप किसी को कितना बर्दाश्त कर सकते हैं । यह उसका प्रतीक है और इसके आर्टिकल 25a में यह लिखा गया है कि सब लोग आजाद हैं। हर एक आदमी अपने धर्म को प्रैक्टिस कर सकता है उसका प्रचार प्रसार कर सकता है। उसके लिए वह आजाद है उस पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

इसलिए हम किसी के मौलिक अधिकारों पर रोक नहीं लगा सकते हैं । यह फैसला कर्नाटका हाई कोर्ट ने सुनाया है। अब इसमें एक सवाल यह पैदा होता है कि क्या अजान को लेकर जो भी विवाद बात चल रहा था क्या अब वह विवाद खत्म हो जाएगा या फिर इस तरह का कोई मामला फिर दोबारा से देखने में आ सकता है?