नहीं रहे प्रधानमंत्री पीएम इमरान खान।
आपको बताते चलें यह बात ठीक है कि आज तक पाकिस्तान में किसी भी प्रधानमंत्री ने 5 साल की मुद्दत पूरी नहीं की है। यह बात भी ठीक है कि किसी प्रधानमंत्री को पाकिस्तान की फौज ने कान पकड़ कर निकाला तो किसी को न्याय तंत्र ने बाहर का रास्ता दिखाया। मगर इमरान खान अकेले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनको विपक्ष के अलावा कोई भी बाहर नहीं भेजना चाहता था। यूं वो पाकिस्तानी इतिहास के पहले प्रधानमंत्री बन गए जिनको संविधान के कानून मुताबिक घर जाना पड़ा।
लेकिन यह भी इतना आसानी से नहीं हुआ , शुरू शुरू में जब अविश्वास प्रस्ताव पार्लियामेंट में जमा किया गया तो प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहां की मैं तो खुद खुदा से यह दुआ मांग रहा था कि कोई इस तरह का मौका आए जिसमें मैं विपक्ष के चोर डाकुओं पर खुलकर हाथ डाल सकूं। जब मैं इस अविश्वास प्रस्ताव को विश्वास प्रस्ताव में बदल कर घर जाऊंगा तो मेरे हाथ खुल चुके होंगे।
इसके बाद में इन चोर और डाकू का वह हश्र करूंगा कि इनकी आने वाली नस्लें भी याद रखेंगी। जैसे जैसे दिन गुजरते गए वैसे वैसे प्रधानमंत्री को लगा कि मामला थोड़ा सीरियस है। परंतु उन्होंने इसका तोड़ गद्दारी के पुराने चूर्ण से निकालने की कोशिश की और नारा लगा दिया कि यह सब अमेरिका करवा रहा है। इमरान खान जब पौने 4 वर्ष अपनी कौम से कहते रहे कि घबराना नहीं है। तब वह एक अविश्वास प्रस्ताव आने से घबरा गए।
जब गद्दारी का पुराना चूर्ण न्याय संस्थाओं और गुप्तचर विभाग एवं करीबी दोस्त दोस्त चाइना तक ने खरीदने से इनकार कर दिया। तब खान साहब ने कौमी असेंबली के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को आदेश दिया कि अविश्वास प्रस्ताव किसी भी हाल में पास न होने पाए, जैसे ही स्पीकर ने यह प्रस्ताव खारिज किया अगले 1 घंटे में खान साहब ने राष्ट्रपति के दस्तखत से असेंबली तोड़ने की घोषणा करवा दी।
मगर उच्चतम न्यायालय ने 4 दिन बाद ही इन तमाम हरकतों को संविधान के खिलाफ करार देते हुए एक ही दिन में कार्रवाई पूरी करने का आदेश दिया। स्पीकर और खान साहब ने इस आदेश की भी धज्जियां उड़ाने की कोशिश की, और सुना है जाते-जाते आर्मी चीफ को भी बदलने की कोशिश की। जब पार्लिमेंट के बाहर कैदी ले जाने वाली गाड़ी आकर खड़ी हो गई । उच्चतम न्यायालय के दरवाजे रात 12:00 बजे खुल गए और दो आला अफसर उससे 2 घंटे पहले प्रधानमंत्री भवन में हेलीकॉप्टर से उतरे और उन्होंने खान साहब को अविश्वास प्रस्ताव का मतलब ठीक से समझाया तब जाकर के खान साहब ठंडे पड़े।
मगर तब भी त्यागपत्र देने के बजाय अविश्वास प्रस्ताव की मंजूरी का इंतजार करते रहे । इमरान खान ने अपने आखिरी दिनों में भारत की आजाद विदेशी पॉलिसी का बहुत ही जिक्र किया । काश कोई खान साहब को यह बात भी बता देता की उसी भारत के एक नेता अटल बिहारी वाजपेई ने अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करके पार्लिमेंट बिल्डिंग से घर जाने का बाइज्जत रास्ता चुना और अगला चुनाव जीतकर उसी रास्ते से लोकसभा में दाखिल हुए।