जंग में काग़ज़ी अफ़राद से क्या होता है, हिम्मतें लड़ती हैं तादाद से क्या होता है.

जंग में काग़ज़ी अफ़राद से क्या होता है, हिम्मतें लड़ती हैं तादाद से क्या होता है.

दो हिजरी से ही रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ किए गए और रमज़ान की 17 तारीख को यानि 13 मार्च सन्‌ 624 ई० को इस्लाम की पहली जंग लड़ी गई, जो की #जंगे_बद्र के नाम से जानी जाती है।

ये वो दौर था जब पैगम्बरे इस्लाम हुक्मे इलाही लोगों को बताया करते थे और एक अल्लाह की इबादत करने को कहा करते थे, जिसकी वजह से मक्के के लोग उनकी जान के दुश्मन बन गए थे और आपको आखिरकार हिजरत कर मक्के से मदीने आना पड़ा।
इस दौरान आपके साथ आपके चन्द जानिसार साथी थे और ये सभी इबादते इलाही किया करते, नमाज़ पढ़ा करते थे, और रोजे फ़र्ज़ होने के बाद रोज़े रखा करते थे और हर काम अल्लाह की रज़ा से किया करते थे।
तमाम तकलीफों के बावजूद सब्र किया करते थे, मगर खुद आगे बढ़कर कभी लड़ाई नहीं की, लेकिन इसके बावजूद जब कुफ्फार नबी-ए-करीम से दुश्मनी की गरज़ से उन्हें नुकसान पहुंचाने की लगातार कोशिशें की तो अल्लाह ने अपने प्यारे नबी को हुक्म दिया कि ऐ नबी, जो तुम्हें तकलीफ पहुंचाये, तुम उससे जंग करो, और इसके बाद इस्लाम की तारीख में जो सबसे पहली जंग लड़ी गई, वो है जंगे बद्र जो मदीने से करीब 80 मील दूर बद्र नामक जगह पर लड़ी गई,

जिसमें एक तरफ मक्के के कुरैश कबीले के तकरीबन 1000 बड़े-बड़े योद्घा शामिल थे तो दूसरी तरफ पैगम्बरे इस्लाम के साथ उनके सिर्फ 313 साथी शामिल थे, जिनमें से ज्यादातर लोगों ने कभी जंग लड़ी ही नहीं थी, यहाँ तक की जंग के किसी भी किस्म के साजो सामान तक उनके पास नहीं थे।’

अभी जंग शुरू भी नहीं हुई थी कि उसके एक दिन पहले ही अल्लाह के नबी सलल्लाहो अलैह वसल्लम उस जगह पर सहाबा के साथ आये और एक डंडा लेकर लकीर खींच गोल दायरा बनाया।
किसी की समझ में कुछ नहीं आया तो सहाबा ने वजह जाननी चाही तब अल्लाह के रसूल ने फरमाया कि इस जगह पर अबू जेहल मारा जाएगा।
कुछ दूरी पर दूसरा दायरा खींचा और फरमाया कि उमय्या यहां मारा जाएगा। तीसरा दायरा खींचकर फरमाया सयबा यहां मारा जाएगा। चौथी लकीर खींच कर फरमाया उतबा यहां मारा जाएगा।

किसी भी जंग में अमूमन होता तो ये है कि पहले जंग होती है और लोग मारे बाद में जाते हैं। मगर कुर्बान जाइए आका के हालते गैब के इल्म पर जिसमें जंग बाद में हुई और मरने वालों की ख़बर पहले दे दी गई।
अबू जहल वो बदबख़्त था जिसने अल्लाह के रसूल को बहुत बुरा भला कहा था, उन्हें बहुत तकलीफ पहुंचाई थी, इस बदबख़्त को जब अल्लाह के रसूल और उनके जानिसारों की खबर मिल गयी तो उसने सोचा की उनकी तादाद ही कितनी है, मुठ्ठी भर इसलिए अच्छा मौका है, सबको हलाक करने का ताकि कोई मोहम्मद स.अ.व. के खुदा को मानने वाला ही नहीं रहेगा, तो इस्लाम वैसे ही ख़त्म हो जाएगा।

जब जंग शुरू हुई तो दुश्मनों की तादाद कई गुना ज़्यादा थी, जिसमे कुरैश कबीलों वालो में मौजूद बहुत से लोग किसी न किसी के करीबी रिश्तेदार भी थे। ‘यहाँ तक की कोई किसी का बाप तो कोई चचा, मामू भी था तब अल्लाह के रसूल ने अपने रब से दुआ की कि ऐ मेरे रब अगर इस जंग में हम नाकाम रहे तो फिर तेरी इबादत करने वाला कोई ना रहेगा।

ये भी पढ़ें  यूपी के मदरसों में सर्वे के नाम पर हुआ बड़ा खेल! नाराज हुए उलेमा

अल्लाह ने इस जंग में उनकी मदद फरमाई ‘ इस जंग में अल्लाह के रसूल की तरफ से एक सहाबी उमेदा बिन हारिस ने उस वक्त आपसे जन्नत के बारे में पूछा कि या रसूल अल्लाह अगर मैं शहीद हो गया तो क्या मुझे भी जन्नत मिलेगी? आपने उससे कहा- हां, बेशक तुम जन्नती हो और इस बहादुर सहाबा ने बहादुरी से लड़ते हुए शहादत पाई।

अचानक ही जंग के दौरान महाज और मोअव्वीस नाम के दो बच्चे आए। एक दस और दूसरा 12 साल का था। दोनों बच्चों ने हज़रते अब्दुर्रमान बिन ओफ से अबू जेहल के बारे में जानकारी ली। उन्होंने उन बच्चों से पूछा तुम क्यों पूछ रहे हो? तुम्हे जंग से दूर रहना है, मगर उन बच्चों ने कहा वो गुस्ताख़ हमारे आक़ा ए करीम स.अ.व. को गाली देता था, हम उसे मारेंगे, कहते हुए दोनों हाथ में छोटी तलवारें लिए वे दुश्मनों के लश्कर में घुसते चले गए। वे अबू जेहल तक पहुंचे और ऐसा मारा कि वह जमीन पर गिरकर तड़पने लगा।

अबू जहल को भी ये ख़बर लग चुकी थी की मोहम्मद स.अ.व. ने उसके मरने की जगह के बारे में तक बतलाया है, तब वह अपने साथियों से पूछने लगा कि क्या यह वही जगह है जहां लकीर खिंची गयी थी? उसके साथियों ने हां कहा तो वह छटपटाते हुए दायरे से बाहर निकलने लगा, लेकिन नहीं निकल पाया। तब साथियों से कहने लगा कि मोहम्मद स.अ.व. की भविष्यवाणी को झूठी साबित करना है, मुझे इस दायरे से बाहर निकालो। साथी उसे उठाने के लिए झुके ही थे कि अबू जेहल ने दम तोड़ दिया।

इस जंग में 70 कुफ्फार कत्ल हुए और इतने ही घायल हुए, कुछ को बंदी बनाया गया तो कुछ जान बचाकर भाग गए। ‘अल्लाह के रसूल के तरफ से जंग करने वालो में छह मुहाजिर और आठ अंसारी शहीद हुए और आख़िरकार हक़ की जीत हुई। ‘लड़ाई ख़त्म होने के बाद अल्लाह के रसूल को बेचैन देखकर एक सहाबा ने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल आप परेशान क्यों है? आपने फ़रमाया कैदियों को जो रस्सिया बांधी गई है, उन्हें ढीली करो इनमें मेरे चचेरे भाई अब्बास भी हैं और फिर उनके हुक्म के मुताबिक सभी कैदियों को फिदिया लेकर छोड़ दिया गया। इनमें जो पढ़े लिखे कैदी थे, उनका फिदिया ये था कि वो 10 बच्चों को लिखना पढ़ना सिखाएंगे।

ये था अख्लाक और इन्साफ हमारे प्यारे आका नबी ए करीम स.अ.व. का, जिन्होंने दुश्मनों को भी कभी कोई तकलीफ नहीं दी…सुभानअल्लाह।

#जंगे_बद्र

Related News